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दुनिया के विभिन्न देशों के लोग अलग-अलग रीति-रिवाजों का पालन करते हैं और अजीबोगरीब तरीके से त्योहार मनाते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे त्योहार के बारे में बताएंगे जो लाशों के साथ मनाया जाता है। जी हां, इस त्योहार के बारे में जानकर आपको कुछ अजीब जरूर लगेगा, लेकिन यह बिल्कुल सच है। इंडोनेशिया में एक विशेष जनजाति इस त्योहार को मनाती है, जिसे मानाने महोत्सव के नाम से जाना जाता है।
मानेन उत्सव की शुरुआत करीब 100 साल पहले हुई थी। बारप्पू गांव के लोग इसके उत्सव के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी बताते हैं। लोगों के मुताबिक सौ साल पहले तोराजन जनजाति का एक शिकारी गांव से जंगल में शिकार करने गया था। पोंग रुमासेक नाम के इस शिकारी ने जंगल के बीच एक लाश देखी। जली हुई लाश को देखकर रुमासेक रुक गया। उन्होंने अपने ही कपड़े पहनकर शव का अंतिम संस्कार किया।
इसके बाद रुमासेक के जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आए और उनकी दुर्दशा भी समाप्त हो गई। इस घटना के बाद से रुमासेक के जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं और उनकी दुर्दशा भी दूर हुई है। इस घटना के बाद तोराजन जनजाति के लोगों में अपने पूर्वजों के शवों को सजाने का रिवाज शुरू हो गया। ऐसा माना जाता है कि मृत शरीर की देखभाल करने से पूर्वजों की आत्माओं को आशीर्वाद मिलता है।
यह पर्व किसी की मृत्यु के बाद ही मनाया जाने लगता है। परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद उन्हें एक दिन में दफनाया नहीं जाता बल्कि कई दिनों तक मनाया जाता है। यह सब मृत व्यक्ति की खुशी और उसे अगली यात्रा के लिए तैयार करने के लिए किया जाता है। इस यात्रा को पुआ कहा जाता है। इस त्योहार के दौरान रिश्तेदार बैल और भैंस जैसे जानवरों को मारते हैं और मृतक के घर को अपने सींगों से सजाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिसके घर में जितने सींग होंगे, उसे अगली यात्रा में उतना ही सम्मान मिलेगा।
इसके बाद लोग मृतकों को जमीन में दफनाने के बजाय लकड़ी के ताबूतों में डालकर गुफाओं में रख देते हैं। अगर कोई बच्चा या 10 साल से कम उम्र का बच्चा मर जाता है तो उसे पेड़ की दरारों में रख दिया जाता है। मृतक के शरीर को कई दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए तरह-तरह के कपड़ों में लपेटा जाता है। मृतक को कपड़े ही नहीं बल्कि फैशन का सामान भी पहनाया जाता है। सजावट के बाद लोग मृतक को लकड़ी के ताबूत में एक पहाड़ की गुफा में रख देते हैं। इसके साथ ही सुरक्षा के लिए ताऊ-ताऊ नामक लकड़ी का पुतला रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ताबूत के अंदर का शरीर मरा नहीं है, बल्कि बीमार है और सोते समय उसे सुरक्षा की जरूरत होती है।
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इसके बाद हर 3 साल में लाशों को खोदकर निकाला जाता है और फिर से कपड़े पहनाए जाते हैं। इतना ही नहीं लोग लाशों के साथ बैठकर खाना भी खाते हैं। रिश्तेदार भी शवों से लिए गए कपड़े पहनते हैं। कई सालों के बाद जब शरीर हड्डियों में बदलने लगता है तो उसे जमीन में गाड़ दिया जाता है।
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